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आज एक बार फिर से मेरी अस्मत लूटी गयी हैं और आज एक बार फिर से मरी हूँ मै।
जी हाँ मैं दामिनी हूँ वही दामिनी जिसे इस उभरती आर्थिक शक्ति भारत की राजधानी
दिल्ली में नंगी करके सडको पे फेक दिया गया था जिसकी गरिमा को सडको पे तार
तार कर दिया गया था जिसके साथ हुई दरिन्दगी को देख कर मानवता घुट घुट के मरी थी।
आज जब इंसाफ का समय आया तो एक बार फिर से मुझे छला गया हैं एक बार फिर से मेरी इज्जत
लूटी गयी हैं।
उस वहशी दरिन्दे को जिसने मेरे साथ सबसे बड़ी क्रूरता की थी उसे केवल 3 साल की सजा न केवल मेरी आत्मा को विचलित करती हैं अपितु हमारी सारी न्याय वयवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगाती हैं और हमारे
नीतिनिर्माताओ के मुख पर एक तमाचे के समान हैं।
आखिर महिलाओ के लिए न्याय के मामले में हम इतने मजबूर क्यों हो जाते हैं। हमारी कानूनी खामियों
का दंड हम महिलाये क्यों उठाये।
निर्णय लेते समय ये तो ध्यान रक्खा गया की अपराधी किशोर हैं पर ये क्यों भुला दिया गया कि उसने कितनी हैवानियत की थी मेरे साथ और उसकी क्रूरता के कारण तिल तिल के मरा था मेरा शरीर और किस तरह मेरी सांसो ने इस दरिन्दगी के सामने घुटने टेक दिये थे ।
ऐसे वहशी किशोर को जो अब बालिग होने ही वाला हैं के लिए तो मृत्युदंड भी कम होता पर धन्य हैं हमारे
नीतिनिर्माता और कानून व्यवस्था जिनकी गैर जिम्मेदाराना कृत्यों और अकर्तव्यशीलता के कारण ऐसे
वहशी दरिन्दे भी कानून की खामियों का फायदा उठा के बच निकलते हैं।
मैं तो अपनी आत्मा को किसी तरह समझा लूंगी पर मेरी उन बहनों का क्या होगा जिनके सर पर इन जैसे
खूंखार जानवरों का साया हमेशा मडराता रहता हैं।
मेरी बहने अब भय के समाज के रहने को अभिशप्त हो जाएँगी क्योकि उचित दंड के अभाव में ये जानवर अब और खुल के हमले करेंगे क्योकि उन्हें पता हैं कि उन्हें रोकने वाला तंत्र अत्यंत दुर्बल और असक्त हैं।
अगर पुनर्जन्म होता हैं तो इश्वर से यही प्रार्थना करूंगी की मुझे ऐसे समाज में कभी भी स्त्री बना के न भेजे जहाँ आँचल की छाँव में पलने वाले पुरूष ही उस आँचल की गरिमा को तार त़ार कर दे और मुझ जैसी अनगिनत दामनी न्याय की तलाश में भटकती रहे।
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